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हवा

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सुबह नदी के पुल पे जो ठंडी हवा चेहरे को असीम आनंद देती है, वो हवा हो तुम,

ग्रीष्म के पश्चात सूखी हुई ज़मीन को जो बारिश की पहली बूँद चैन देती है, वो बूँद हो तुम।


तुम्हारा मेरा ध्यान रखना ऐसा है मानो तेज़ भूख में चूल्हे पे सिकी हुई रोटी मक्खन, हरी मिर्च के चटनी और प्याज़।


तुम्हारा मुस्कुराना पता है कैसा लगता है, जैसे किसी बीज को रोपने के बाद जब उससे नव अंकुर फूटता है, एक दम खिला हुआ, ताज़ा, बिना किसी की परवाह के अल्हड़ सा अपने में मस्त।


तुम्हारे हाथों का स्पर्श मानो किसी वैध का काम करता है,

सर पर रखती हो तो सब ठीक लगता है।


तुम्हारी शैतानियाँ ऐसी है जैसे सुबह सुबह गहरी नींद में किवाड़ में से आती हुई सूरज की किरण।

और तुम्हारा होना तो ऐसा है कि मुझे एक बच्चा बना देता है, सभी चिंताओं और परेशानियों से दूर, सिर्फ़ तुम में खोया हुआ ।

 
 
 

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