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राम जन्म्भूमि शिलान्यास: संस्कृति पुनर्निर्माण का अवसर

12/08/2020

आस्था के मामले मे मै थोडा जिद्दी हूँ। 5 अगस्त को राम मंदिर के शिलान्यास पर तरह तरह की बाते कही जा रही है। धार्मिक, राजनीतिक व सामाजिक सरोकार से जुडे लोगो के अपने मत व विचार है।

मेरा मानना है कि आस्था तर्क से परे है, क्योकि तर्क ज्ञान पर आधारित है, जबकि आस्था विश्वास पर और ज्ञान की सीमा है और विश्वास की नही।

प्रारम्भ मे राम मंदिर निर्माण आंदोलन फिर सुप्रीम कोर्ट का फैसला और अब शिलान्यास इन सभी चरणो मे सबसे महत्वपूर्ण बात निकल कर जो आती है, वह यह है कि इसने बहुसंख्यको को एक करने का काम किया है, ध्यान रहे कि यह एकता किसी संगठन, राजनीतिक पार्टी या व्यक्ति विशेष के प्रति भक्ति नही बल्कि अपनी धार्मिक संस्कृति के प्रति विश्वास है। हर व्यक्ति अपना मत देने के लिए स्वतंत्र है।

आज लगभग सभी जगह राममय महौल है, वाट्सएप, फेसबुक से लेकर गलियो मे झण्डिया लगाने के पुराने फेशन के लौटने, गाडियो पर झण्डा लगाने तक सब लोग राममय हुए प्रतीत होते है। यह सिर्फ मंदिर निर्माण की प्रसन्नता नही बल्कि सनातनी संस्कृति के लौटते विश्वास का प्रतीक है। राजनीति से पृथक हर सामान्य व्यक्ति मे यह भाव है कि राममंदिर निर्माण हमारे संस्कृति के पुनर्निर्माण मे एक महत्वपूर्ण पडाव साबित होगा। सनातनी संस्कृति का जो ह्रास पिछली कुछ सदियो मे हुआ वह अक्षम्य है, और उसी की वजह से आज आम हिंदू भी अपने धर्म व संस्कृति पर गर्व करने मे संकोच करता है, क्योकि जो कुरीतिया पिछ्ली कुछ सदियो मे इस धर्म से जुडी उन्होने समाज मे विकृति लाने का काम किया और उन तबको को धर्म से दूर किया जिन पर इन कुप्रथाओ का सीधा प्रभाव पडा। वास्तव मे एक समय ऐसा था जब कुप्रथाए अपने चरम पर थी और धर्म के छद्म पालन के चलते इसका सबसे बडा ह्रास हो रहा था। आज जब वर्तमान पीढी तर्क व आस्था मे बराबर विश्वास रखती है, उसके पास एक मौका है अपनी धार्मिक संस्कृति मे विश्वास बढाने का और उसके अच्छे तत्वो को आत्मसात कर उसे आगे बढाने का। क्योकि आप वर्तमान मस्तिष्क को बिना तर्क दिए अपनी बातो पर सहमत नही कर सकते। और यह सम्भवतः लगभग अंतिम पीढी या समय है जब आप अपनी संस्कृति को पुनर्जीवित करने का प्रयास कर सकते है, क्योकि इसके आगे बहुत देर हो चुकी होगी। यह अंतिम अवसर इस पीढी ने आपको दिया है आपको अपनी बात रखने का, क्योकि कही न कही उनका अंतर्मन भी यही चाहता है। पर इस बार यदि आप इसमे विफल होते है या इससे अपने दूसरे हित साधने का प्रयास करते है तो आपको आगे यह अवसर प्राप्त हो यह सुनिश्चित नही।

इसलिए हम सभी को इस महान अवसर का लाभ उठाते हुए अपनी संस्कृति की पुनर्स्थापना करनी है, और अपनी आगे आने वाली पीढियो को इसके सकारात्मक पक्षो को सामने रखना है जिससे इसे और आगे तक बढाया जा सके।

अंततः मेरा यह मानना है कि, संस्कृति ही हमारी पहचान है, यदि हम हमारी संस्कृति से विमुख हो गए तो बिना किसी (धर्म) परिवर्तन के हम परिवर्ति हो जाते है व हमारी पहचान समाप्त हो जाती है।

अतः श्री राम जन्म भूमि शिलान्यास को संस्कृति के पुनर्निमाण के एक महान प्रारम्भ के रूप मे देखना चाहिए और इसके पुनरुद्धार के लिए जन मानस को लग जाना चाहिए। जय श्रीराम ।

गौरव भार्गव

 
 
 

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