रोज़ी रोटी और घर
- gaurav99a5
- Sep 15, 2023
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में अपना शहर छोड़कर (जो मुझे लगता था कि मेरा है), किसी दूसरे शहर आया।
पर जिसने स्कूल के टाइम पढाई के लिए और उसके बाद नौकरी के लिए अपना घर छोड़ा हो वास्तव में उसका कोई शहर होता ही नहीं। हर शहर की गलियों से उसका लगाव सीमित ही रहता है।
लगाव...., हाँ लगाव,जो किसी सड़क, मोड़ या किसी पेड़ के अपनी निजी संपत्ति न होने पर भी अपनेपन का अहसास देता है।
हर एक मौसम की खुशबू जो हमारे मन को याद रहती है। हर जगह का अपना अहसास, कार्नर की चाय और समोसे की दुकान, किसी खास सड़क पर उड़ती हुई धूल या फिर किसी चौराहे की भीड़।
हम हर चीज़ से दिल लगा लेते हैं, और जैसे ही दिल लगता है हमे वो जगह छोड़ना पड़ती है।
ख़ैर...... बात लगाव की हो रही थी जो पूरी तरह कही नही हो पाता,क्योकि हम किसी जगह के है ही नही।
हम तो बस आधुनिक बंजारे है जो अपनी गुजर बसर चलाने इस शहर से उस शहर बस भागते रहते है।
हमेशा कुछ अपना सा जो शायद अपना था ही नही को छोड़ते हुए।
गौरव
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